रायपुर : छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में चल रहे कांग्रेस के 85वें राष्ट्रीय अधिवेशन में सांसद राहुल गाँधी ने भारत जोड़ो यात्रा के अपने अनुभवों को साझा किया ।राहुल गांधी ने रायपुर, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के 85वें महाधिवेशन के अवसर पर उपस्थित जनसमूह को संबोधित करते हुए कहा चार महीने कन्याकुमारी से श्रीनगर तक भारत जोड़ो यात्रा हमने की। वीडियो में आपने मेरा चेहरा देखा, मगर हमारे साथ लाखों लोग चले थे, हर स्टेट में चले, बारिश में, गर्मी में, बर्फ में एक साथ हम सब चले।
बहुत कुछ सीखने को मिला, अभी जब मैं वीडियो देख रहा था, मुझे बातें याद आ रही थी, वीडियो में आपने देखा होगा पंजाब में एक मैकेनिक आकर मुझसे मिला,मैंने उसके हाथ पकड़े और सालों की जो तपस्या थी उसकी, सालों का जो दर्द था, जो खुशी, जो दुख जैसे ही मैंने उसके हाथ पकड़े, हाथों से मैंने बात पहचानी। वैसे ही लाखों किसानों के साथ, जैसे ही हाथ पकड़ते थे, जैसे ही हाथ मिलाते थे, गले लगते थे, एक ट्रांसमिशन सा हो जाता था। शुरुआत में बोलने की जरुरत होती थी, क्या करते हो, कितने बच्चे हैं, क्या मुश्किलें हैं?
ये एक-डेढ़ महीना चला। उसके बाद बोलने की जरुरत नहीं होती थी। जैसे ही हाथ पकड़ा, गले लगे। एक शब्द नहीं बोला जाता था। मगर जो उनका दर्द था, जो उनकी मेहनत थी, एक सेकंड में मुझे समझ आ जाता था और जो मैं उनसे कहना चाहता था, बिना कुछ बोले वो समझ जाते थे। अभी मैंने देखा, आपने वो बोट रेस देखी होगी, केरल में। उस समय जब मैं बोट में बैठा था, पूरी टीम के साथ मैं रोइंग कर रहा था। मेरे पैर में भयंकर दर्द था, मैं उस फोटो में मुस्कुरा रहा हूं, मगर मेरे दिल के अंदर रोना आ रहा था, इतना दर्द था।
मैंने यात्रा शुरु की, काफी फिट आदमी हूं, 10-12 किलोमीटर ऐसे ही दौड़ लेता हूं। घमंड था, मैंने सोचा था 10-12 किलोमीटर चल लेता हूं, तो 20-25 किलोमीटर चलने में क्या बड़ी बात है। मेरे माइंड में ये था। पुरानी इंजरी थी, कॉलेज में चोट लगी थी फुटबाल खेलते हुए। मुझे याद है, मैं दौड़ रहा था, मेरे दोस्त ने पीछे से अडंगी मार दी और घुटने में चोट लगी। दर्द गायब हो गया था, सालों से दर्द गायब था और अचानक जैसे ही मैंने यात्रा शुरु की, दर्द वापस आ गया।
आप मेरे परिवार हैं, तो मैं कह सकता हूं आपसे, सुबह उठता था, सोचता था कैसे चला जाए और फिर उसके बाद सोचता था कि 25 किलोमीटर नहीं, 3,500 किलोमीटर चलने हैं। केरल की बात है, 3,500 किलोमीटर चलने हैं, कैसे चलूंगा और फिर कंटेनर से उतरता था, चलना शुरु करता था। लोगों से मिलता, तो पहले 10-15 दिन में, जिसको आप अहंकार कह सकते हैं, घमंड कह सकते हैं, वो सारा गायब हो गया। क्यों गायब हुआ- क्योंकि भारत माता ने मुझे मैसेज दिया, देखो तुम अगर निकले हो, अगर कन्याकुमारी से कश्मीर तक चलने निकले हो, तो अपने दिल से अहंकार मिटाओ, घमंड मिटाओ, नहीं तो मत चलो और मुझे ये बात सुननी पड़ी, मुझमें उतनी शक्ति नहीं थी कि मैं इस बात को ना सुनूं और आहिस्ता-आहिस्ता मैंने नोटिस किया कि मेरी आवाज चुप होती गई।
पहले किसान से मिलता था, मैं उसको अपना ज्ञान समझाने की कोशिश करता था। थोड़ी जो मुझमें जानकारी है, खेती के बारे में, मनरेगा के बारे में, फर्टिलाइजर के बारे में, मैं कहने की कोशिश करता था। आहिस्ता-आहिस्ता ये सब बंद हो गया। शांति सी आ गई और सन्नाटे में मैं सुनने लगा। आहिस्ता-आहिस्ता ये बदलाव आया और जब मैं जम्मू-कश्मीर पहुंचा, वो भी अजीब सी बात थी, जब मैं जम्मू-कश्मीर पहुंचा, मैं बिल्कुल चुप हो गया। कह लो जैसे मेडिटेशन करता है, प्रियंका और मैं विपासना करते हैं, वैसी बात हो गई और बिल्कुल चुप हो गया।
माँ बैठी हैं, मैं छोटा था, 1977 की बात है, चुनाव आया। मुझे चुनाव के बारे में कुछ मालूम नहीं था। 6 साल का था मैं, एक दिन घर में अजीब सा माहौल था। मैं माँ के पास गया, बैठी हुई हैं, इधर नहीं देख रही हैं। माँ के पास गया, मैंने माँ से पूछा, मम्मी क्या हुआ और माँ कहती हैं, हम घर छोड़ रहे हैं। तब तक मैं सोचता था कि वो घर हमारा था। तो मैंने माँ से पूछा, माँ हम अपने घर को क्यों छोड़ रहे हैं और पहली बार माँ ने मुझे बताया कि राहुल ये हमारा घर नहीं है, ये सरकार का घर है और अब हमें यहाँ से जाना है। मैंने माँ से पूछा, माँ कहाँ जाना है? कहती हैं- नहीं मालूम। नहीं मालूम कहाँ जाना है। मैं हैरान हो गया, मैंने सोचा था कि वो हमारा घर था। 52 साल हो गए, मेरे पास घर नहीं है, आज तक घर नहीं है और हमारे परिवार का जो घर है, वो इलाहाबाद में है। वो भी हमारा घर नहीं है। तो जो घर होता है, उसके साथ मेरा बड़ा अजीब सा रिश्ता है। मैं 12 तुगलक लेन में रहता हूं, मगर मेरे लिए वो घर नहीं है।
तो जब मैं निकला, कन्याकुमारी से निकला, मैंने अपने आपसे पूछा कि मेरी जिम्मेदारी क्या बनती है और मैं चल रहा हूं। भारत का दर्शन करने निकला हूं, भारत को समझने के लिए निकला हूं। हजारों-लाखों लोग चल रहे हैं, भीड़ है, मेरी क्या जिम्मेदारी है? मैंने थोड़ी देर सोचा और फिर मेरे दिमाग में एक आईडिया आया – मेरे ऑफिस के लोगों को मैंने बुलाया, जो मेरे साथ थे, मेरे साथ चल रहे थे। मैंने उनको कहा देखिए, यहाँ पर हजारों लोग चल रहे हैं, धक्का लगेगा, लोगों को चोट लगेगी। बहुत भीड़ है, हमें एक काम करना है – मेरे साइड में, मेरे सामने 20-25 फुट आगे इस तरफ 20-25 फुट ये जो जगह है, ये जो खाली जगह है, जिसमें हिंदुस्तान के लोग आएंगे, हमसे मिलने आएंगे, अगले 4 महीने के लिए वो हमारा घर है। मतलब ये घर हमारे साथ चलेगा।
सुबह 6 बजे से शाम 7 बजे तक, ये घर हमारे साथ चलेगा और मैंने सबसे कहा देखिए, इस घर में जो भी आएगा, अमीर हो, गरीब हो, बुजुर्ग हो, युवा हो, बच्चा हो, किसी भी धर्म का हो, किसी भी स्टेट का हो, हिंदुस्तान से बाहर का हो, जानवर हो, उसको ये लगना चाहिए कि मैं आज अपने घर आया हूं और जब वो यहाँ से जाए, उसे लगना चाहिए कि मैं अपने घर को छोड़कर जा रहा हूं।
छोटा सा आईडिया था, मगर इसकी गहराई मुझे तब नहीं समझ आई। जैसे ही मैंने ये किया, जिस दिन मैंने ये किया, उस दिन यात्रा बदल गई, जादू से बदल गई। लोग मेरे साथ राजनीतिक बात नहीं कर रहे थे। मैंने क्या-क्या सुना, मैं आपको बता भी नहीं सकता हूं। हिंदुस्तान की महिलाओं ने मुझे क्या कहा है इस देश के बारे में, मैं आपको बता नहीं सकता हूं। युवाओं के दिल में डर क्या है, कैसा है, मैं आपको बता नहीं सकता, समझा नहीं सकता, कह सकता हूं, मगर बता, समझा नहीं सकता, कितना बोझ उठा रहे हैं। तो बिल्कुल रिश्ता बदल गया।
एक उदाहरण देता हूं, पता नहीं आपने शायद नहीं देखा, चल रहे थे हम सुबह-सुबह। साइड में एक महिला भीड़ में खड़ी थी, झिझक कर उसने ऐसे किया मुझे, जैसे ही मैंने देखा, मैंने उसे बुलाया। मुझे बात अजीब सी लगी। मेरे पास आई, मैंने हाथ पकड़ा। मुझे एकदम मालूम पड़ गया कि कुछ ना कुछ गलत है। जैसे मैं प्रियंका का हाथ पकड़ता हूं, वैसे मैंने उसका हाथ पकड़ा था, कोई फर्क नहीं। मैंने सोचा, उस समय मैंने सोचा, ये मेरी बहन नहीं है, ये मैं क्या कर रहा हूं, जो मेरा प्यार मेरी बहन के लिए है, ये मैं कैसे दे रहा हूं, अजीब सा लगा। मेरा हाथ पकड़ती है,कहती है राहुल जी, भईया, मैं आपसे मिलने आई हूं। मैंने पूछा- क्या बात है? मेरा पति मुझे मार रहा है, पीट रहा है। मैंने कहा- कब। कहती है- अभी। अभी वो मुझे मार रहा था। मैं घर से भागी हूं, आपसे मिलने। तो मैंने कहा कि पुलिस को बुलाएं, कहती है नहीं-नहीं पुलिस को नहीं बुलाइए। फिर मुझे कहती है, अब मैं जा रही हूं वापस, फिर से पिटने जा रही हूं, मगर मैं आपको सिर्फ ये बताना चाह रही थी कि मेरे साथ क्या हो रहा है। ये महिला अकेली नहीं है, ऐसी लाखों-करोड़ों महिलाएं हैं इस देश में।
तो ये सब मुझे सुनने को मिला और उस घर को हम आहिस्ता-आहिस्ता जम्मू-कश्मीर तक ले गए। पता नहीं शायद मेरा परिवार सालों पहले वहाँ से आया। मैंने सोचा कि अजीब सी बात है कन्याकुमारी से कश्मीर तक मैं ये इस छोटे से घर को ले जा रहा हूं और यहाँ मुझे लग रहा है कि वापस मैं अपने घर जा रहा हूं। कश्मीर में हम घुसते हैं, वैली से पहले बर्फ है, धूप है, जैसे आज, और हजारों लोग हमारे साथ चल रहे हैं। एक लड़का आता है मेरे पास, मेरे साथ चलता है और मुझसे कहता है राहुल जी, मैं आपसे एक सवाल पूछना चाहता हूं।
मैंने कहा क्या- कहता है, राहुल जी, जब कश्मीर के लोगों को दुख होता है, जब हमारे दिल में चोट लगती है, तो बाकी हिंदुस्तान के लोगों को खुशी क्यों होती है? मैंने कहा गलतफहमी में हो, ऐसी कोई बात नहीं है। मैं कन्याकुमारी से यहाँ तक आया हूं, मैं दावा करके कह सकता हूं कि करोड़ों लोगों के दिल में ये भावना नहीं है। करोड़ों लोग हर हिंदुस्तानी के दर्द के साथ, हर हिंदुस्तानी के साथ खड़े हैं। मैंने कहा चुने हुए लोग हैं, जो खुश होते हैं। हजारों में होंगे, मगर हिंदुस्तान में करोड़ों लोग, मेरी आंख में आंख मिलाता है और कहता है, राहुल जी, आपने मुझे बहुत खुश कर दिया। आपने मुझे बहुत खुश कर दिया।
बातचीत करते हुए मैं देख रहा था, चारों ओर तिरंगा, सड़क पर तिरंगा, पहाड़ों पर तिरंगा, पीछे तिरंगा, आगे तिरंगा, सब जगह तिरंगा। फिर हम वैली में घुसे। वैली में घुसते हैं, बादल छा जाते हैं। धूप गायब हो जाती है और जैसे ही हम घुसते हैं, पुलिस वालों ने हमें कहा था कि 2000 लोग आएंगे। मेरे सिक्योरिटी वालों ने सोचा था कि 2000 लोग आएंगे। जैसे ही हम घुसते हैं, वहाँ 40 हजार लोग खड़े हैं। जैसे ही पुलिस वालों ने 40 हजार लोगों को देखा, रस्सी छोड़ कर भाग गए। हम देख रहे थे, जिसको रोप पार्टी कहते हैं, वो सब गायब हो गई।
मैं देख रहा था, हिंदुस्तान के सबसे टेररिस्ट इंफेस्टेड जिले में, जहाँ भी आप देखो तिरंगा, तिरंगा, तिरंगा, सब जगह। कौन उठा रहे थे तिरंगा, हमारे पास सिर्फ 125 यात्री थे, कश्मीर के लोगों ने तिरंगा उठाया था। एक ने नहीं उठाया था, हजारों ने उठा रखा था और यही कहानी पूरे कश्मीर में। अनंतनाग, पुलवामा, जिसको टेररिस्ट इंफेस्टेड डिस्ट्रिक्ट कहा जाता है, हर डिस्ट्रिक्ट में पहाड़ों पर, सड़क पर, आगे-पीछे तिरंगा। किसके हाथ में – कश्मीरी युवाओं के हाथ में। सीआरपीएफ के लोग मुझसे कह रहे हैं कि भईया ये तो हमने जिंदगी में नहीं देखा, ये क्या हो गया।
फिर मैं आया, पार्लियामेंट में मैंने प्रधानमंत्री जी का भाषण सुना। कहते हैं कि मैंने भी जाकर लाल चौक पर तिरंगा फहराया था। मैं सुन रहा था, मैंने सोचा देखिए, हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री को बात समझ नहीं आई। नरेन्द्र मोदी जी ने बीजेपी के 15-20 लोगों के साथ जाकर लाल चौक पर तिरंगा फहराया। भारत जोड़ो यात्रा ने लाखों-कश्मीरी युवाओं के हाथ से तिरंगा फहराया। प्रधानमंत्री को फर्क नहीं समझ आया। हमने हिंदुस्तान की भावना, इस झंडे की भावना जम्मू-कश्मीर के युवाओं के अंदर डाल दी। आपने अपने झंडे की भावना जम्मू-कश्मीर के युवाओं से छीन ली। ये फर्क है हममें और आपमें।
ये जो झंडा है, ये जो तिरंगा है, ये दिल की भावना है। ये दिल के अंदर से आती है। हमने इस भावना को कश्मीर के युवाओं के दिल के अंदर जगाया। हमने उनसे नहीं कहा कि भईया तुम्हें तिरंगा लहराना है, तुम्हें तिरंगा उठाकर चलना है, नहीं, किसी से नहीं कहा, अपने आप आए। हजारों-लाखों थे, और अपने हाथ में तिरंगा उठाकर चले। क्यों चले, मैं आपको बताता हूं, कश्मीरी युवाओं ने मुझे कहा, मुझे कहता है राहुल जी, आज मैं आपके साथ तिरंगा लिए चल रहा हूं, जानते हैं क्यों? मैंने कहा क्यों- कहते हैं क्योंकि आपने हम पर और मुझ पर भरोसा किया है। आपने अपना दिल हमारे लिए खोला है और हम अपना दिल आपके लिए खोलेंगे। ये फर्क है।
हिंदुस्तान एक भावना है, एक सोचने का तरीका है, इज्जत है, आदर है, मोहब्बत है और ये जो झंडा है, तिरंगा है, ये इस भावना का चिन्ह है और भारत जोड़ो यात्रा ने इस भावना को पूरे देश में फैलाया है और ये काम राहुल गांधी ने नहीं किया है, ये काम कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने किया है, कांग्रेस के नेताओं ने किया है, हिंदुस्तान की जनता ने किया है।
अब देखिए सरकार की सोच के बारे में आज आपको बताना चाहता हूं। कुछ दिन पहले इंटरव्यू में एक मंत्री ने कहा कि चीन की इकोनॉमी हिंदुस्तान की इकोनॉमी से बड़ी है। तो हम उनसे कैसे लड़ सकते हैं? चीन की इकोनॉमी हिंदुस्तान की इकोनॉमी से बड़ी है, तो हम उनसे कैसे लड़ सकते हैं। जब अंग्रेज हम पर राज करते थे, क्या उनकी इकोनॉमी हमारी इकोनॉमी से छोटी थी? लड़ाई, इसका मतलब जो आपसे शक्तिमान हैं, उनसे आप लड़ो ही मत। जो आपसे कमजोर हैं, उसी से लड़ो। इसको कायरता कहा जाता है।
सावरकर की विचारधारा, अगर जो आपके सामने आपसे तगड़ा है, मजबूत है, तो उसके सामने अपना सिर झुका दो, मत्था टेक दो। हिंदुस्तान के मंत्री कह रहे हैं, हिंदुस्तान का मंत्री चीन से कह रहा है कि आपकी इकोनॉमी हमसे बड़ी है, तो हम आपके सामने खड़े नहीं हो सकते हैं। इसको क्या नेशनलिज्म कहते हैं? इसको देश भक्ति कहते हैं क्या? ये कौन सी देशभक्ति है? जो आपसे कमजोर है, उसे आप मारो और जो आपसे मजबूत है, उसके सामने आप झुक जाओ। शब्द है इसके लिए, महात्मा गांधी कहते थे, सत्याग्रह की बात करते थे। सत्याग्रह का मतलब- सत्य के रास्ते को कभी मत छोड़ो, इनके लिए एक नया शब्द है, आरएसएस-बीजेपी वालों के लिए, हम हैं सत्याग्रही हैं, वो हैं सत्ताग्राही। ये सत्ता के लिए कुछ भी कर लेंगे। ये किसी से भी मिल जाएंगे, किसी के सामने झुक जाएंगे सत्ता के लिए। ये इनकी सच्चाई है।
आखिरी बात और मुझे ये बात समझ नहीं आई। पार्लियामेंट हाउस में मैंने एक उद्योगपति पर आक्रमण किया। अडानी जी पर मैंने आक्रमण किया, मैंने कहा कि अडानी जी 609 नंबर से दूसरे नंबर तक कैसे पहुंचे। आपकी जो फॉरेन पॉलिसी बनती है, चाहे वो बांग्लादेश हो, चाहे वो इजरायल हो, चाहे वो ऑस्ट्रेलिया हो, श्रीलंका हो, सब जगह उनको फायदा मिलता है। इजराइल में सारे के सारे डिफेंस के कॉन्ट्रैक्ट मिल गए। श्रीलंका में एक व्यक्ति कहता है कि राजपक्षे ने उनसे कहा कि नरेन्द्र मोदी जी ने दबाव डाल कर अडानी जी को कॉन्ट्रैक्ट दिलवाया। तो मैंने सिर्फ एक सवाल पूछा, नरेन्द्र मोदी जी, आपका अडानी से रिश्ता क्या है? मैंने और कुछ नहीं कहा। मैंने सिर्फ सवाल पूछा कि भईया बता दो रिश्ता क्या है और मैंने एक ऐसे फोटो दिखाई, उसमें नरेंद्र मोदी जी ऐसे बैठे हैं। नरेन्द्र मोदी जी अडानी जी के हवाई जहाज में रिलेक्स करते हुए दिख रहे हैं। तो मैंने पूछा कि भईया बता दीजिए, रिश्ता क्या है?
अब आपने नोटिस किया होगा कि पूरी की पूरी सरकार, सारे के सारे मंत्री अडानी जी की रक्षा करने लग में गए। कहते हैं कि जो अडानी पर आक्रमण करता है, वो देशद्रोही है। मतलब अडानी जी देश के सबसे बड़े देशभक्त बन गए और बीजेपी और आरएसएस इस व्यक्ति की रक्षा कर रही है। सवाल ये उठता है (भाजपा) रक्षा क्यों कर रही है? क्या है इस अडानी में, जो बीजेपी और आरएसएस को, सब मंत्रियों को इसकी रक्षा करने की जरुरत पड़ रही है? नहीं सुनिए और सबसे बड़ा सवाल ये जो शैल कंपनी हैं, जो हजारों करोड़ रुपए हिंदुस्तान भेज रही है, ये किसकी हैं? इसमें किसका पैसा है? अडानी जी डिफेंस इंडस्ट्री में काम करते हैं और हिंदुस्तान की सरकार को ये भी नहीं मालूम कि अडानी की शैल कंपनी हैं बाहर। इसमें इन्वेस्टिगेशन क्यों नहीं हो रहा? जेपीसी क्यों नहीं हो रही? डिफेंस का मामला है, देश की रक्षा का मामला है, पता तो लगाना चाहिए, ये पैसा किसका है, शैल कंपनी किसकी हैं, मगर नहीं।
तो ये बहुत बड़ा सवाल है। एलआईसी का इन्वेस्टमेंट है। उनका नुकसान हुआ है। ऑस्ट्रेलिया में फोटो दिखती है, नरेंद्र मोदी जी बैठे हैं, स्टेट बैंक के चेयरमैन बैठे हैं, वहाँ के चीफ मिनिस्टर बैठे हैं, अडानी जी बैठे हैं, एक मेज पर। स्टेट बैंक एक बिलियन डॉलर का लोन दे रहा है। नरेन्द्र मोदी जी उस मेज पर क्यों बैठे हैं? क्या लेना-देना है नरेंद्र मोदी जी का स्टेट बैंक और अडानी के बीच में, क्या लेना-देना? तो ये सवाल हैं और ये सवाल मैंने पूछे, नरेन्द्र मोदी जी से पूछे। बहुत सीधा जवाब था- कोई रिश्ता नहीं है। सिंपल सा जवाब था। हमने पूछा क्या रिश्ता है, नरेन्द्र मोदी जी कह सकते थे कि कोई रिश्ता नहीं है। मगर रिश्ता है।
भाईयों और बहनों, अडानी और मोदी जी एक हैं। एक हैं और देश का पूरा का पूरा धन एक व्यक्ति के हाथ में जा रहा है। एयरपोर्ट, पोर्ट, डिफेंस, इन्फ्रास्ट्रक्चर,स्टोरेज, एग्रीकल्चर स्टोरेज, सेब, हिमाचल प्रदेश में सेब, कश्मीर में सेब, पूरा का पूरा धन एक व्यक्ति के हाथ में जा रहा है और जब हम प्रधानमंत्री जी से पूछते हैं ये 609 से 2 नंबर पर कैसे पहुंचा? बस ये बता दीजिए कि रिश्ता क्या है? हमारी पूरी की पूरी स्पीच एक्सपंज हो जाती है। खरगे जी की पूरी की पूरी स्पीच एक्सपंज हो जाती है। अडानी जी के बारे में हिंदुस्तान की पार्लियामेंट में सवाल नहीं पूछा जा सकता है। हम पूछेंगे, एक बार नहीं, हजारों बार पूछेंगे, रुकेंगे नहीं। जब तक सच्चाई नहीं निकलेगी, अडानी जी की सच्चाई नहीं निकलेगी, तब तक हम नहीं रुकेंगे और इसका एक कारण है, भाइयों और बहनों और खासकर जो लोग अडानी जी की कंपनी में काम करते हैं, उनसे मैं कहना चाहता हूं कि ये आपकी जो कंपनी है, ये देश को नुकसान पहुंचा रही है। ये देश के पूरे के पूरे इन्फ्रास्ट्रक्चर को छीन रही है।
भाईयों और बहनों, याद रखिए, आजादी की लड़ाई भी ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ हुई थी, वो भी एक कंपनी थी। उस कंपनी ने भी हिंदुस्तान का सारा धन, सारा इन्फ्रास्ट्रक्चर, पोर्ट, सारा का सारा उठा लिया था। इतिहास रिपीट हो रहा है। ये देश के खिलाफ काम हो रहा है और अगर देश के खिलाफ काम होगा, तो कांग्रेस पार्टी खड़ी हो जाएगी, लड़ जाएगी।
आखिरी बात कहना चाहता हूं, देखिए, ये पार्टी तपस्वियों की पार्टी है, ये पुजारियों की पार्टी नहीं है। ये तपस्वियों की पार्टी है, ये तपस्या की पार्टी है और आपने देखा, छोटी सी तपस्या की, चार महीने की तपस्या की और आपने देखा कांग्रेस पार्टी में कैसी जान आई, कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ता में कैसी जान आई, देश में कैसी जान आई। तपस्या बंद नहीं होनी चाहिए। प्रोग्राम चलना चाहिए, तपस्या का प्रोग्राम होना चाहिए। उसमें कांग्रेस के हर कार्यकर्ता को शामिल होना चाहिए, हर नेता को शामिल होना चाहिए, उस प्रोग्राम में दर्द लगना चाहिए, मुश्किल लगनी चाहिए, पसीना निकलना चाहिए, चोट लगनी चाहिए।
खरगे जी कांग्रेस के प्रेजिडेंट हैं, वरिष्ठ नेता बैठे हैं, तपस्या का प्रोग्राम बनाइए, हम सब मिलकर तपस्या में शामिल होंगे, अपना खून-अपना पसीना इस देश को देंगे और जैसे, मैं आपको गारंटी देता हूं, जैसे ही हम तपस्या में खड़े हो जाएंगे, पूरा का पूरा हिंदुस्तान हमारे साथ तपस्या में खड़ा हो जाएगा, क्योंकि ये देश तपस्वियों का है। तो प्रोग्राम बनाइए, खरगे जी, प्रोग्राम बनाइए, आपकी पूरी की पूरी टीम,जिसमें मैं शामिल हूं, कांग्रेस के सब नेता शामिल हैं, हर एक कार्यकर्ता शामिल है, देश की जनता शामिल है, उस प्रोग्राम को हम चलाएंगे, तपस्या करेंगे, अपना खून-पसीना देंगे।
बहुत-बहुत धन्यवाद। जय हिंद।