तमांग जनजाति करती है नृत्य, वाद्ययंत्रों को भगवान बुद्ध के प्रतीक के रूप में मानते हैं
रायपुर। सिक्किम में नये साल का सेलिब्रेशन तमांगशेलो नृत्य के साथ होता है। नये साल के अवसर पर लोग यह खूबसूरत नृत्य करते हैं। इस नृत्य की खासियत इसमें उपयोग होने वाले वाद्ययंत्र हैं। यह वाद्ययंत्र भगवान बुद्ध के प्रतीक के रूप में माने जाते हैं। इन वाद्ययंत्रों के माध्यम से तमांगशेलो नृत्य की सुंदर प्रस्तुति होती है। खास बात यह है कि नृत्य का आरंभ कोयल की कुहु कुहु से होता है। इस तरह यह नृत्य प्रकृति में रमा हुआ नृत्य है। साथ ही बौद्ध धर्म की आध्यात्मिक परंपराओं को भी अपने भीतर समेटे हुए हैं।
नृत्य की विशेषता इसके चटखीले रंगों की वेशभूषा भी है। सिक्किम की वेशभूषा इसमें पूरी तरह निखर कर सामने आती है। साथ ही वाद्ययंत्रों के साथ सुंदर डांस स्टेप इस नृत्य के आनंद में खासी वृद्धि करते हैं। विशेष रूप से डंपू नामका वाद्ययंत्र इस पूरे नृत्य की खूबसूरती में खास तौर पर इजाफा करता है।
मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में आयोजित राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव में देश के विविध राज्यों के लोक रंग की झलक मिल रही है। नृत्य के साथ ही क्षेत्र के प्रचलित लोकविश्वासों की झलकी भी देखने में आ रही है।