समय-समय पर लगातार व्हाट्सएप के माध्यम से शिकायतों पर कार्रवाई करने निवेदन किया जाता रहा, जोन कमिश्नर डीके कोसरिया को फोन के माध्यम से भी संपर्क करने की कोशिश की जाती रही परंतु उन्होंने कभी फोन नहीं उठाया और ना ही व्हाट्सएप के माध्यम से की गई शिकायत पर संज्ञान लिया और ना ही रिटर्न जवाब दिया | जोन 10 के टाउन एंड प्लानिंग अधिकारी अमित सरकार से लगातार संपर्क करने और शिकायत पर कार्यवाही करने के निवेदन पर अवैध निर्माण कर्ता कविराज सुंदरानी को नगर निगम द्वारा 16.7.21 – 7.9.21 एवं अंतिम नोटिस 18 फरवरी 2022 को दिया जा चुका है |
18 फरवरी 2022 के बाद अभी नवंबर 2023 तक अर्थात 20 महीनो बाद भी नगर निगम द्वारा उक्त अवैध निर्माण को तोड़ने में पीछे हटने के पीछे कोई ना कोई तो लेनदेन का कारण होगा !
या यह माना जाए कि नगर निगम के अधिकारी किसी भी शिकायत और अपने द्वारा दी गई नोटिस की कार्यवाही को भी महत्व नहीं देते |
पूरे शहर में अवैध निर्माण की बाढ़ आई हुई है और नगर निगम के संबंधित वार्डों के अधिकारी, सब इंजीनियर अपनी आंखें बंद कर अवैध निर्माणों को बढ़ावा दे रहे हैं |
इन अधिकारियों के कारण नगर निगम के राजस्व का नुकसान हो रहा है, यही कारण है कि नगर निगम द्वारा समय-समय पर टैक्स में बढ़ोतरी कर अपने नियमित खर्चों को पूरा किया जाता है और यह एक प्रकार से आम नागरिक पर बिना वजह का बोझ है | नगर निगम कमिश्नर भी अपने जिम्मेदारियां का निर्वहन करने में पीछे रहते हैं, समीक्षा बैठक क्यों नहीं करते ?*
महापौर तो राजनीतिक दल से आते हैं और आश्वासन देकर अगली बार अपने पद से हट जाते हैं| महापौर और सत्ता पार्टी के पार्षद अपनी पार्टी के नियमों का पालन करते हुए अपने वोट बैंक तक सीमित रहते हैं, उन्हें नियमों का पालन करने और करवाने से कोई लेना-देना नहीं होता, परंतु निगम कमिश्नर एवं अन्य अधिकारी शासन के अधीन होते हैं सत्ता परिवर्तन होता रहे परंतु वह अपने पदों पर आसीन रहते हैं फिर वह भी अगर वे अपनी जिम्मेदारियां का पालन नहीं करेंगे तो जनता जाए तो जाए कहां ?
नगर निगम के महापौर, अधिकारी, पार्षद अपनी जिम्मेदारियां का निर्वहन नहीं करते हैं तो नगरीय प्रशासन मंत्री को चाहिए कि वह स्वयं संज्ञान लेकर साल में कम से कम चार बार समीक्षा बैठक करें ताकि अधिकारियों को अपनी जिम्मेदारियां की रिपोर्ट देने से पहले 10 बार सोचना पड़ नगरी प्रशासन मंत्री एवं अन्य संबंधित वरिष्ठ अधिकारी जिनमें जिला कलेक्टर भी आते हैं उन्हें भी पुरानी फाइलों की समीक्षा करनी चाहिए ताकि धूल खाती फाइलों का अंबार कम हो सके और नागरिकों को न्याय मिल सके |
यह प्रकरण एक उदाहरण मात्र है, ऐसे हजारों – लाखों प्रकरण रायपुर नगर निगम सीमा के अंतर्गत पेंडिंग पड़े हैं, जिन पर ध्यान देने की आवश्यकता है |
अब देखने वाली बात यह है कि प्रदेश में अगली बनने वाली सरकार के मंत्री एवं संबंधित विभागों के अधिकारी अपनी जिम्मेदारियां का निर्वहन किस प्रकार करते हैं ?