अब स्थानीय भाषाओ में मिलेगी जानकारी, आई.आई एस सी बैंगलोर कर रहा है कार्य

अब स्थानीय भाषाओ में मिलेगी जानकारी, आई.आई एस सी बैंगलोर कर रहा है कार्य

तकनीक जो विश्वसनीय और जीवन बदलने वाली हो

ज्ञान हो या शिक्षा, इसे कभी भी सूचना प्रौद्योगिकी के उपयोग में बाधक नहीं बनना चाहिए। प्रौद्योगिकी तभी सार्थक होती है जब वह उन लोगों को आसानी से उपलब्ध हो जिन्हें इसकी जरूरत है। क्या यह एक महान क्रांति नहीं है जब कोई अपनी जरूरत की जानकारी अपनी भाषा और उपभाषा में प्राप्त कर सकता है? भारत के प्रतिष्ठित भारतीय विज्ञान संस्था (आई.आई.एस.सी), बैंगलोर ने इस तरह के क्रांतिकारी परिवर्तन लाने के लिए एक महत्वाकांक्षी परियोजना शुरू की है।

आज गुगल, एलेक्सा, सिरी, कॉर्टाना, आदि से हम चुटकियों में जो भी जानकारी चाहते हैं वह मिल जाता है किंतु जब इसी को स्थानीय भाषा में चाहते है तो बहुत ही ज्यादा कठिनाई होती है। वर्तमान में किसी विषय पर हमें छत्तीसगढ़ी में जानकारी चाहिए तो पर्याप्त रूप से नहीं मिल पाती। छत्तीसगढ़ी भाषा भी विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग तरह से बोली जाती है। भारतीय विज्ञान संस्थान (आई.आईएस सी), बैंगलोर द्वारा विभिन्न भारतीय भाषाओं, उपभाषाओं के साथ ही छत्तीसगढ़ी भाषा को भी डिजिटल करने का कार्य किया जा रहा है।

छत्तीसगढ़ी भाषा ऑनलाईन प्लेटफार्म में उपलब्ध होने से छत्तीसगढ़ के जनमानस को जो भी जानकारी चाहिए वह अपनी भाषा और उपभाषा में उपलब्ध हो सकेगा। विभिन्न क्षेत्रों में क्षेत्रीय भेद के चलते एक ही भाषा को अलग-अलग प्रकार से बोली जाती है। छत्तीसगढ़ी को मैदानी क्षेत्रों में अलग तरीकों से बोला जाता है किंतु जैसे सरगुजा, बिलासपुर, रायगढ़, कवर्धा, आदि क्षेत्रों में जाते हैं तो वहाँ बोली जाने वाली छत्तीसगढ़ी के शब्दों एवं शैली में भिन्नता आ जाती है।

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. प्रशांत कुमार घोष के नेतृत्व में एक शोध-दल नौ भारतीय भाषाओं , यथा – बंगाली, हिंदी, भोजपुरी, मगधी, छत्तीसगढ़ी, मैथिली, मराठी, तेलुगु और कन्नड़ में आवाज के माध्यम से सूचना तक पहुँचने की आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित तकनीक विकसित कर रहा है।

छत्तीसगढ़ी भाषा में कार्य करने हेतु छत्तीसगढ़ के प्रतिष्ठित पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर के साहित्य एवं भाषा अध्ययनशाला के शोध उपाधिधारक डॉ. हितेश कुमार का चयन एसोसिएट रिसर्च (छत्तीसगढ़ी) के पद पर किया गया है। इन्होंने पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति डॉ. केशरी लाल वर्मा के कुशल निर्देशन में अपना शोध-कार्य पूर्ण किया है। डॉ. हितेश राजभाषा छत्तीसगढ़ी के साथ ही रायगढ़, सरगुजा, बिलासपुर और कवर्धा क्षेत्र में बोली जानी वाली छत्तीसगढ़ी के लिए विभिन्न सहयोगियों के साथ कार्य कर रहे हैं।

अपनी बोली में ही जानकारी उपलब्ध होने से दूर-दराज के गाँव में रहने वाला कोई भी व्यक्ति स्वास्थ्य संबंधी मुद्दो से लेकर पशुपालन, पशुओं का कृषकों के दैनिक जीवन में महत्व, पारंपरिक एवं आधुनिक खेती के तरीके, सर्वोत्तम उर्वरकों एवं कीटनाशकों का प्रयोग, वित्त, बैंकिंग, व्यवसाय, शासकीय योजनाएँ, बच्चों के स्वास्थ्य एवं पोषण, आदि का विस्तृत जानकारी प्राप्त कर सकता है। यहाँ तक कि कम पढ़े-लिखे, गरीब व्यक्ति भी अपनी कमाई को सुरक्षित जगह में निवेश करने से लेकर अपने बच्चों के लिए सर्वोत्तम शिक्षा के अवसरों जैसे विभिन्न जानकारी तक पहुँच सकता है।

इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु 11000 घंटे की ऑडियो आधारित जानकारी एकत्र की गई है, जहाँ यह सुनिश्चित किया गया है कि पुरुस और महिला वॉयस रिकॉर्डिंग समान अनुपात में हों। इस परियोजना के लिए भारतीय विज्ञान संस्थान, RESPIN और SYSPIN ने Navana Tech (http://navanatech.in//) और BhaShiNi Digitization Services (http://bhashiniservice.com//) के साथ एक संयुक्त उद्यम बनाया है। इस महत्वपूर्ण परियोजना के लिए बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन ने दो मिलियन डॉलर की मंजूरी दी है। जर्मन डेवलपमेंट कोऑपरेशन इनिशिएटिव ने तकनीकी सहायता प्रदान की है।

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